प्राचीन शिक्षा संस्कृति का होगा पुनः प्रादुर्भाव जिसने विश्व स्तर पर बनाई थी विश्वविद्यालयो की अलग पहचान
प्रो.सिंह ने कहा कि सुविवि की ख्याति उच्च शिक्षा के प्राचीन संस्थानों नालंदा और तक्षशिला के समान ही होगी ताकि दुनिया के विभिन्न हिस्सों के छात्र उच्च शिक्षा के लिए भारत के उदयपुर शहर को प्राथमिकता दें। इसमें आने वाली चुनौतियों को हल करने की दिशा में भी है काम करना होगा।गुणवत्तापरक उच्च शिक्षा ज्ञान की गतिशीलता,राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु बहुत महत्त्वपूर्ण है। नवप्रवर्तक और भविष्योन्मुखी विश्वविद्यालय इसके पीछे की प्रेरक शक्तियां है। भारतीय उच्चतर शिक्षा प्रणाली ने समय के साथ अपनी वैश्विक प्रतिस्पर्धी श्रेष्ठता खो दी है।इसलिए भविष्य के विश्वविद्यालयों को राष्ट्र की वृद्धि और विकास के ऐसे केंद्रीय आधारस्तंभ बनना होगा जो न केवल बुद्धिमत्तापूर्ण लोगों को विकसित करें बल्कि प्रखर बौद्धिकता का भी विकास करें। हमारे विश्वविद्यालयों को सक्रिय शिक्षण और अनुसंधान स्थलों में परिवर्तित करना ही होगा, जो नवप्रवर्तन और नए विचारों के लिए लांच पैड की तरह काम कर सकें। उन्होंने शिक्षा क्षेत्र की आधारभूत भूमिका को भी रेखांकित करते हुए कहा कि, यदि भारत को उच्चतर वृद्धि दर हासिल करनी है और मानव विकास सूचकांक पर अपनी स्थिति बेहतर बनानी है, तो देश के शिक्षा क्षेत्र को बहुत सावधानी से पोषित करना होगा। हमें सिंहावलोकन करते हुए हमारे विश्वविद्यालयों के भविष्य पर विचार करना होगा जो हमें राष्ट्र निर्माण हेतु संस्थाओं के विकास में योगदान हेतु सक्षम और सशक्त बनाएगा।
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Last Updated on : 24/04/24
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