मेवाड़ में विश्वकल्याण का मानवीय आचरण है धर्म - डॉ. चंद्रशेखर शर्मा
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की मेवाड़ शोध पीठ द्वारा महाराणा प्रताप की 481 में जयंती समारोह की श्रंखला में आज मेवाड़ के धर्म और दर्शन पर ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया ।
संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए इतिहासकार डॉ . चंद्रशेखर शर्मा मेवाड़ के ध्येयवाक्य "जो दृढ़ राखे धर्म को तेरी राखे करतार " के संदर्भ में धर्म और दर्शन की व्यापक व्याख्या की । डॉ शर्मा ने कहा कि दर्शन जब जीवन और आचरण में आता है तो उसे धर्म कहते हैं । यदि वह आचरण में नहीं आएगा तो केवल प्रदर्शन बनकर रह जाएगा । महाराणा प्रताप का जीवन और चरित्र सनातन धर्म के वास्तविक मूल्यों का जीवंत प्रतिमान है। विराट प्रकृति सिद्धान्तों के अनुरूप विश्व कल्याण का आचरण मेवाड़ का धर्म है । इस धर्म में साधन और साध्य दोनों पवित्र हैं । यह धर्म संपूर्ण मानव समाज के सर्वांगीण विकास का साधन है । मेवाड़ में राज धर्म और प्रजा धर्म अलग नहीं है । प्रजा के अभाव और संघर्षों को का अनुभव प्रताप ने स्वयं किया और उन्हीं का जैसा जीवन जिया । मनुष्य के व्यक्तिगत और निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर विश्व कल्याण पूर्वक आत्म कल्याण का आचरण मेवाड का धर्म है। कार्यक्रम के मुख्यअतिथि कुलपति प्रो अमेरिका सिंह थे जिन्होंने मेवाड़ शोधपीठ की गतिविधि को सराहा और इस आयोजन के लिए शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि मेवाड़ शोधपीठ माध्यम से मेवाड की ऐतिहासिक विरासत पर लगातार अकादमिक विमर्श किए जाने चाहिए। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि विश्वविद्यालय के पूर्वकुलसचिव डॉ आर पी शर्मा ने वेद और स्मृति ग्रन्थों के आधार पर कहा कि धर्म ही मनुष्य के लोकव्यवहार का प्रेरक होता है।
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Last Updated on : 26/03/24
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