सुखाड़िया विश्वविद्यालय के साथ फ्रांस के शिष्टमंडल की उच्च स्तरीय शिखर वार्ता आयोजित-शिक्षण, शोध और नवाचारों में आपसी सहयोग पर सहमति
सुखाड़िया विश्वविद्यालय के साथ फ्रांस के शिष्टमंडल की उच्च स्तरीय शिखर वार्ता आयोजित-शिक्षण, शोध और नवाचारों में आपसी सहयोग पर सहमति
अंतर्राष्ट्रीय पटल पर राज. प्रदेश को उच्च शिक्षा का वैश्विक गंतव्य बनाने की दिशा में सुखाड़िया विश्वविद्यालय का प्रयास
राजस्थान प्रदेश को देश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ‘वैश्विक स्टडी डेस्टिनेशन’ बनाने का फ्रेमवर्क
भारत में उच्च शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के साथ-साथ देश और विदेश में संस्थागत प्रतिबद्धता में सुविवि अग्रणी, भारत के उच्च शिक्षा का आकर्षक गंतव्य बनने का स्वप्न होगा साकार-प्रो.अमेरिका सिंह कुलपति
प्रदेश के विश्वविद्यालयों के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए व्यापक कार्य नीति की आवश्यकता- प्रो.अमेरिका सिंह कुलपति
उदयपुर, देश की नई राष्ट्रिय शिक्षा नीति में भारत के उच्च शिक्षा के विकास की महत्वाकांक्षी योजना के फ्रेमवर्क का प्रस्ताव रखा गया है, जिसके तहत वर्ष 2030 तक देश की उच्च शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण होना है। उच्च शिक्षा का यह अंतरराष्ट्रीयकरण,भारत में शिक्षा के क्षेत्र में नई क्रांति लेकर आएगा, राजस्थान प्रदेश में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अमेरिका सिंह ने सबसे पहले उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में काम करना प्रारम्भ कर दिया हैं।
इसी योजनानुरूप कुलपति महोदय प्रो. अमेरिका सिंह के अध्यक्षता में फ़्रांस के शिष्ट मंडल के साथ उच्च स्तरीय बैठक का आयोजन हुआ। बैठक में डॉ.फेबिया शेरे ,लिया पॉल, सौदामिनी देव ,संजना सरकार तथा विश्वविद्यालय प्रतिनिधि मंडल में प्रोफेसर एन लक्ष्मी, प्रोफेसर मीरा माथुर, डॉ अविनाश पवार ,प्रोफेसर प्रदीप त्रिखा उपस्थित रहे। बैठक में विभिन्न संकायों के निदेशक एवं शिक्षाविद शामिल रहे l वार्ता का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए विदेशी राष्ट्रों में उचित अवसर प्रदान करना एवं विद्यार्थी तथा अध्यापक विनिमय था। फ्रांस के शिष्टमंडल के साथ की गई इस वार्ता का मुख्य उद्देश्य उच्च शिक्षा के स्तर पर सहयोग, विद्यार्थियों का परस्पर सांस्कृतिक आदान- प्रदान, शिक्षकों का वैचारिक आदान प्रदान एवं दोनों देशों में परस्पर सहयोग के साथ अंतरराष्ट्रीय संगठन गोष्ठियों का आयोजन एवं प्रबंधन विकास जैसे कार्यक्रमों की रूपरेखा पर विचार हुआ । कार्यक्रम का आयोजन डॉ मीनाक्षी जैन, डॉक्टर हर्षदा जोशी, डॉ डोली मोगरा, डॉ सचिन गुप्ता, डॉक्टर गिरिमा, डॉ पामिल मोदी के द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम ने कुलपति महोदय ने यह भी बताया की कोविड महामारी की बाद सुखाड़िया यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग एवं आर्किटेक्चर के विद्यार्थियों को शोध एवं विकास के लिए फ्रांस भेजा जाएगा। । सुखाड़िया विश्वविद्यालय मे बेहतरीन शिक्षण के साथ ही रोजगार परक पाठ्यक्रमों का संचालन कर रहा है एवं इस तरह की वार्ताएं भविष्य में भी आयोजित की जाएंगी जिससे सुखाड़िया विश्वविद्यालय के विद्यार्थी विद्यार्थियों को अच्छी जगह रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकेंगे । फ्रांस शिष्टमंडल ने सुखाड़िया विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ सांस्कृतिक आदान प्रदान किया जाएगा। कुलपति अमेरिका सिंह ने बताया कि मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय से 5 शिक्षकों को एवं विद्यार्थियों को चयनित कर फ्रांस में शोध के लिए भेजा जाएगा जिससे कि जिससे कि विद्यार्थी एवं शिक्षकगण मे शोध एवं नवाचार के अफसरों को सूचित कर सकें एवं देश के सर्वांगीण विकास में भरपूर योगदान दे सकें। फ़्रांस एंबेसी से आये प्रतिनिधियों ने विश्वविद्यालय में नवनिर्मित विश्वविद्यालय का मुख्य द्वार एवं संवैधानिक पार्क का अवलोकन किया एवं वस्त्र एवं हस्तशिल्प मंत्रालय एवं विश्वविद्यालय के फैशन एवं टेक्नोलॉजी विभाग के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित प्रदर्शनी का सांस्कृतिक मंडल ने अवलोकन किया एवं काफी सराहना की।
इस अवसर पर कुलपति प्रोफ़ेसर सिंह ने फ्रांस के शिष्टमंडल से वार्ता करते हुए कहा कि भारत में अंतर्राष्ट्रीयकरण लंबे समय से अपेक्षित है। राष्ट्रिय शिक्षा नीति वैश्विक सहयोग और भारतीय शैक्षणिक संस्थानों की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। भारत को हमेशा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए एक वैश्विक गंतव्य के रूप में देखा गया है। हमारा भारत नालंदा और तक्षशिला जैसे पारंपरिक संस्थानों का केंद्र है, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हुए इस समृद्ध शैक्षिक संस्कृति ने भारत को अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए दुनिया भर से लाखों लोगो को आकर्षित किया हैं।
आज भी हमारे प्रदेश के विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा व्यवस्था के पुनर्निर्माण और सामाजिक मांगो पूरा करने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं, भारत हमेशा से ज्ञान का देश रहा है। बहरहाल, हमारे विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अभी भी अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुकूल होने के लिए कुछ दूरी तय करनी है, और हमें उस अंतर को पाटने की दिशा में लगातार काम करना हैं, ऐसे में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अमेरिका सिंह व्यापक दृष्टीकोण के साथ विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने हेतु अनवरत प्रयास कर रहे हैं, सुविवि का यह शिष्टमंडल फ्रांस के विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गतिविधियों, नवाचारों, सामाजिक सरोकार, प्रशासनिक व तकनीकी कौशल शिक्षण, शोध एवं विकास की गतिविधियों और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालय के ख्याति प्राप्त कार्यों का अवलोकन करेगा।
प्रो. सिंह ने कहा कि भारत की प्राचीन और समृद्ध शिक्षा तथा सांस्कृतिक विरासत में छात्रों को आकर्षित करने की जबरदस्त क्षमता थी। हमें उच्च गुणवत्ता के प्रशासनिक कार्यों, अनुसंधान में नवाचारों तथा सामाजिक कार्यों मैं गुणवत्ता बढ़ाने हेतु दूसरे विश्वविद्यालय द्वारा अपनाए जा रहे पैमानों तथा आयामों का अध्ययन करना होगा हमारी शैक्षणिक गतिविधियों और अनुसंधान में गुणवत्ता हेतु अंतरराष्ट्रीय पैमाने आत्मसात करना होगा। भारत में उच्च शिक्षा के परिदृश्य में पिछले कुछ दशकों में भारी परिवर्तन देखा गया है। दुनिया में सबसे बड़ी शिक्षा प्रणालियों में से एक होने के बावजूद हमारे प्रदेश के विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीयकरण कि दौड़ में शामिल नहीं हो पाए हैं । इसके अलावा, भारत की उच्च उच्च शिक्षा प्रणाली अभूतपूर्व परिवर्तनों का सामना कर रही है। शिक्षा का परिदृश्य एक रोमांचक दौर से गुजर रहा है, अंतर्राष्ट्रीयकरण की आवश्यकता और होड़ पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। ऐसे में राजस्थान प्रदेश के विश्वविद्यालय को इस दौड़ का हिस्सा बनने के के लिए नए मानक और अपनी शैक्षिक और सांस्कृतिक साख को निर्धारित करना होंगा। आज देश में अच्छी गुणवत्ता और वैश्विक साख वाले विश्वविद्यालयों की कमी के कारण देश और प्रदेश की प्रतिभा पलायन हो रहा हैं।
हमारे देश के शीर्ष नीतिकारो ने विश्वविद्यालयों की स्थापना के पीछे एक बड़ा लक्ष्य ये निर्धारित किया गया था कि, देश की आम जनता को कम लागत में अच्छी उच्च शिक्षा प्रदान की जा सके, उनकी यह दूरगामी एवं कल्याणकारी सोच भारत के समाज के सभी वर्गों और ख़ास तौर पर कमज़ोर तबक़े के लोगों को शिक्षा के बराबरी के अवसर देने और जीवन में उन्हें आगे बढ़ने देने के समान अवसर देने की अवधारणा से मेल खाती है । यहाँ यह कहना उचित होगा कि भारत में दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारों के साथ-साथ उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और इसका अंतरराष्ट्रीयकरण एक सही दिशा में उठाया गया स्वागत योग्य क़दम है जो भारतीय विश्वविद्यालयों के सफलता की संभावनाओं के सभी द्वार खोलेगी । जैसे-जैसे उच्च शिक्षा क्षेत्र विकसित और व्यापक होता जा रहा है, विश्वविद्यालयों को शैक्षिक प्रौद्योगिकियों के विकास की दिशा में काम करने की आवश्यकता बढ़ी हैं। प्रदेश में उच्च के अंतर्राष्ट्रीयकरण से उद्योग जगत की बढ़ती मांगों और कॉर्पोरेट जगत की तकनीकी को पूरा करने के लिए समग्र शिक्षण बुनियादी ढांचे और सुविधाओं का निर्माण होगा। हर साल विश्वविद्यालयों से निकालनी वाली बेरोजगारों की फौज को अंतर्राष्ट्रीयकरण के माध्यम से बहुत प्रभावित किया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीयकरण से पूंजी, शिक्षा प्रौद्योगिकी में नवीनतम विकास, नवाचार और संस्थान की गतिशीलता में सुविधा होगी, जिसकी भारत में वर्तमान में कमी है। ये कारक भारतीय विश्वविद्यालयों के बीच प्रतिस्पर्धा और नवाचार को बढ़ावा दे सकते हैं। हमारे ही देश के अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय विद्यार्थियों का प्रतिभा पोषण और अंतरराष्ट्रीय डिग्री हासिल करने में मददगार साबित होंगे।
शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ के रूप में प्राय: यह देखा गया है की कि अंतरराष्ट्रीय शिक्षा के बहुसांस्कृतिक वातावरण के संपर्क के कारण ऐसे माहौल के विद्यार्थी उत्कृष्ट क्षमता और व्यापक बौद्धिकता के साथ अच्छा प्रदर्शन करते हैं। । शिक्षा नीति के सुधारों के माध्यम से भारत में विश्व स्तरीय शिक्षा को बढ़ावा देने की हमारे नीति निर्माताओं के मंशा विश्विद्यालयों के उच्च सकल नामांकन के लिए एक सकारात्मक वातावरण तैयार करेगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भारतीय विश्वविद्यालय वैश्विक शिक्षा में मौजूदा रुझानों को आत्मसात करें और इस तरह के नए उपाय निश्चित रूप से हमारे देश की प्रगति और इसके आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास के लिए फायदेमंद साबित होंगे। हमें प्रदेश में उच्च शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के लिए विश्व स्तर के विश्वविद्यालयों का एक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
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Last Updated on : 02/10/24
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